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एक अच्छी माँ ना होने का अपराध भाव क्या होता है, यह मैं अच्छी तरह से समझती हूँ। 2 दिन हॉस्पिटल में एडमिट होने के बाद, तमाम तरह की परेशानियां झेलने के बाद सिजेरियन डिलीवरी से मुझे एक बेटा हुआ। जिस समय उसका जन्म हुआ बस नशे की हालत में एक झलक ही देख पायी थी, और फिर उससे 1 दिन दूर ICU में थी। दूसरे दिन जब मैं रूम में शिफ्ट हुई तब माँ-बेटे की मुलाकात हुई। उस समय मुझे यह नहीं पता था कि, माँ तो बन गयी हूँ, पर एक अच्छी माँ हूँ या नहीं।तीसरे दिन रात के करीब 2:00 बजे मेरा बेटा अचानक से बहुत रोने लगा। तुरंत ही उसके पापा ने उसे डॉक्टर को दिखाया, तो पता चला बच्चे को गैस की समस्या हो रही थी, जिसकी वजह से उसको तकलीफ थी। 5 दिन बाद मैं घर आ गयी। मेरी सिजेरियन डिलीवरी थी, इसलिए मैं खुद से बहुत ज्यादा काम करने में असक्षम थी। डिलीवरी मेरी मायके में हुई थी, इसलिए पूरे अधिकार से माँ और भाभी से अपने काम बोल दिया करती थी। पर बहुत से ऐसे काम है जो खुद ही करना होता है, वह मैं ही किया करती थी।घर आने के 1 हफ्ते बाद, मेरा बेटा पूरी रात परेशान था और रो रहा था। मुझे उसकी परेशानी समझ नही आ रही थी। पर जल्दी ही उसकी समस्या सामने आ गयी, वह बहुत ज्यादा खांसने और छींकने लगा। उसको ठंडी हवा लगने से ज़ुखाम हो गया। एक-दो दिन कुछ घरेलू उपाय किए, पर उसे आराम नहीं हो रहा था। दिन में तो वह सो जाता और पूरी रात परेशान होता। उसके साथ में रातभर जागा करती थी मैं। फिर तुरंत ही डॉक्टर को दिखाया डॉक्टर ने दवाईयां दी। उन दवाईयों से कभी आराम हो जाए, कभी नहीं। मैंने डॉक्टर से पूछा, “आखिर कैसा जुखाम है, जो सही नहीं हो रहा”? तो डॉक्टर ने बोला: “मैं आपको बताना नहीं चाहता था, आप परेशान हो जाएंगी, पर आपके बेटे को ‘निमोनिया’ हो गया है।(यह सुनकर एक माँ को कैसा लगा होगा शायद आप समझ सकती है।) परेशान होने की जरूरत नहीं है, सही हो जाएगा”। पर मैं देख रही थी कि मेरे बच्चे को आराम नहीं हो रहा था। डॉक्टर से दोबारा ये बात कहने पर कि बच्चे को आराम नही मिल रहा, तो डॉक्टर ने कुछ ऐसा कह दिया, जो मेरे दिल पर लग गयी। उन्होंने कहा कि,”आप कैसी माँ है? आप अपने बच्चे का ध्यान नहीं रख पाती हैं। कितना छोटा है और उसको यह समस्या हो गयी। यह समस्या आप से हुई है, आपको इतनी सर्दी खांसी की समस्या है, एलर्जी की समस्या है, जाहिर सी बात है, आपका फीड करता है, तो आपके बच्चे को भी यह समस्या होगी। आप अपना ध्यान क्यों नहीं रखती है? पानी में कोई काम मत करिए। सिर्फ आराम करिए, बच्चे को भी मत लीजिए। उसको अपना फीड मत कराइये। अगर आप ऐसा नहीं कर पाएंगी तो आपके बच्चे को ठीक होने में काफी समय लग जाएगा”।जब डॉक्टर की यह बातें सुनी तो मुझे बहुत ही बुरा लगा कि, “कैसी माँ हूँ मैं? जो अपने बच्चे का ध्यान नहीं रख पा रही। इस बात से बहुत दुखी थी। पूरी कोशिश करती थी कि, अपने बच्चे का हर तरीके से ख्याल रखू। पर भला आप ही बताइए कि, एक माँ कितने दिन अपने बच्चे को फीड नहीं कराएगी। रोना आता था मुझे, चिड़चिड़ाहट होती थी कि, मैं उसे अपना feed कराऊँ या उसे ऊपर का दूध दूँ। कुछ समझ में नहीं आता था और ऊपर से एक अच्छी माँ ना होने की हीन भावना मेरे मन ही मन बैठती जा रही थी। फिलहाल मायके में दो-ढाई महीने बिताने के बाद, मैं जल्द ही अपने पति के साथ वापस घर आ गयी। फिर यहां शहर में डॉक्टरों को दिखाया। उनके बताए अनुसार कि मेरे बेटे को किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है सिवाय ‘सर्दी खांसी’ के और उनकी कुछ दवाईयों से जल्द ही मेरे बेटे को आराम हो गया। पर हां उन्होंने मुझे सलाह दी कि, ‘आपको नेबुलाइजर अपने साथ रखना होगा, जब भी आपके बेटे को जुखाम की समस्या बढ़ेगी तो, आपको नेबुलाइजर की जरूरत पड़ेगी। यह अगले 5 साल तक के लिए जरूरी है, क्योंकि आपके बेटे को एलर्जी की दिक्कत है’।फिर क्या था आज भी कहीं जाती हूँ, तो सारा सामान हो या ना हो पर बेटे के लिए नेबुलाइजर और कुछ जरूरी दवाईयां साथ होती हैं। सिर्फ इसी डर से कि मेरे बेटे को कहीं कोई समस्या छू भी ना सके। यह बात तो तब की थी, जब नई-नई माँ बनी थी। फिलहाल हाल की कुछ बात बताती हूँ। अभी कुछ दिन के लिए मैं मायके रहने गयी थी। अब तो मेरा बेटा डेढ़ साल का हो गया है, लेकिन शैतानियों में अव्वल नंबर पर है और शैतानियां ऐसी कि बस आप अपना सर पकड़ कर बैठ जाओ। मैं अपने पति के साथ दूसरे शहर में रहती हूँ और मेरे सास-ससुर कहीं और। घर में सिर्फ मैं, मेरे पति और मेरा बेटा। जाहिर सी बात है कि अकेले रहने के कारण सिर्फ मेरी ही जिम्मेदारी होती है कि, मैं घर का एक-एक काम देखूं, पति का ख्याल रखूं, बच्चे का ध्यान रखूं और सारा दिन उसके पीछे-पीछे भागती रहूँ। यह सब करते-करते मैं भी झल्ला जाती हूँ।मुझे भी यह लगने लगता है कि, “क्या मैं इंसान नहीं, मशीन या जानवर हूँ? मेरे पास सिर्फ घर का काम और बच्चे को संभालने के अलावा और कुछ भी नहीं रह गया। सारा दिन बच्चे को संभालना, उसकी शैतानियों को देखते-देखते झल्लाहट हो जाती है। इस वजह से मुझे गुस्सा आ जाता है और गुस्से में चिल्ला देती हूँ, डाट देती हूँ या कभी-कभी मार भी देती हूँ। क्योंकि वह ऐसी शैतानियां ही करता है कि, मैं ऐसा करने पर मजबूर हो जाती हूँ। मेरा यह कोई मकसद नहीं होता कि, मैं उसे किसी प्रकार की शारीरिक चोट दूँ। पहले मैं उसे प्यार से समझाती हूँ, पर है तो वह बच्चा ही, नहीं समझता। मैं भी उसको दो-चार बार, दस बार, समझाने के बाद झल्ला जाती हूँ, कि “बार-बार मैं तुम्हें मना कर रही हूँ, यह काम मत करो, तुम्हें चोट लग जाएगी। पर तुम मानते नहीं हो”। और उस गुस्से में मैं उसे डांट देती हूँ। ऐसे ही जब मैं अपने मायके में थी तो, मेरे बेटे ने मेरी नाक में दम कर दिया। मायके गयी थी कि, चलो कुछ दिन आराम कर लूंगी। घर पर वहां जाने के बाद तो बेटे ने जीना दुश्वार कर दिया। सिवाय शैतानी, सिवाय जोखिम के काम करने के अलावा उसके पास और कोई काम नहीं होता था।सुबह से रात भर या जब तक वह सो नही जाता, यह सब देखते-देखते संभालते झल्लाहट में उस पर गुस्सा निकल जाता। कभी-कभी हाथ भी उठ जाता। यह बात मेरी भाभी ने हंसी-हंसी में मेरे एक परिचित से बोल दिया, “कि अरे यह तो अपनी माँ को इतना परेशान करता है कि पिट जाता है”। तो मेरी परिचित ने कुछ भी ना सोचा, ना समझा, ना जाने की कोशिश की, तुरंत ही मुझे एक टाइटल दे दी कि, “U r not a good Mother”, तुम अपने बच्चे को मारती हो? कैसी माँ हो? उसका बचपन छीन रही हो, अरे वह 5 साल तक ऐसे ही शैतानी करेगा, तुमको अपने आप को संभालना होगा, उस पर गुस्सा करती हो, उसको मार देती हो, यह अच्छी माँ के लक्षण नहीं। सच में तुम एक अच्छी माँ नहीं हो”। यह सुन कर मेरे आंखें भर आयी, मन इतना भारी हो गया कि ‘काटो तो खून नहीं’। अंदर ही अंदर यह बात घर कर गयी है कि, क्या मैं एक अच्छी माँ नहीं हूँ? हर संभव कोशिश तो करती हूँ कि, अपने बच्चे को अच्छी परवरिश दूँ, उसका ख्याल रखू, उसके बाद भी मुझे यह सुनने को मिल जाता है कि ‘मैं एक अच्छी माँ नहीं हूँ’।आखिर सामने वाले को किसने हक दिया कि, मुझ पर, मेरी परवरिश पर उंगली उठाए। लोग तो बस ज्ञान देने के लिए आ जाते हैं, ‘बच्चे को ऐसे मत बैठाओ, ऐसे मत चलाओ, यह मत खिलाओ, ज्यादा क्यों खिला दिया? ऐसे क्यों कर दिया, वैसे क्यों कर दिया, बच्चा ही तो है, शैतानी करेगा, उसको डांट क्यों दिया? उसे मार क्यों दिया? तुम्हारा बच्चा इतना TV देखता है? इतना फोन यूज करता है? तुम अपने बच्चे को TV नहीं दिखाती? फोन नहीं देती? लो कर लो बात, दो तो भी समस्या, न दो तो भी। और ऊपर से जब कोई बड़ा सामने से यह खरी-खोटी सुनाने लग जाएगी कि, “अरे तुमने तो डेढ़ साल में ही अपने बच्चे को दूध पिलाना बंद कर दिया, हमने तो 5 साल अपने बच्चे को दूध पिलाया था, अरे आज कल की माँए कहा अपना दूध पिलाना चाहती है। (अब क्या करे वो माँ जिसके इतना दूध न हो कि, बच्चे का पेट भर जाए), अभी उसकी मालिश करती हो या नहीं? हमने तो 4-5 साल मालिश की थी, तभी तो मेरा बेटा इतना मजबूत है। उसको चम्मच से खाना क्यों खिलाती हो? उसको हाथ से खाना खिलाया करो और ना जाने क्या फिजूल की क्या बातें”।(सही है भाई, हम आज कल की माँओ के पास कहा वक्त होता है जो, आपके बच्चे का ध्यान रखे😊) यह सब सुनने के बाद एक माँ, जो अपने बच्चे की हर संभव कोशिश करती है कि, अच्छी परवरिश दे, तो भला आप ही बताइए कि, उसे क्या feel हो रहा होगा? ऐसा ही कुछ मेरे साथ होता है। आप भी इस बात को अच्छे से समझ रही होंगे कि, जब ऐसी कोई भी बात आपके सामने आती है तो कहीं ना कहीं आपको भी बुरा लगता है। समझती हूँ मैं भी कि, वह बच्चा है, शरारत वही करेगा, मैं नहीं। पर जब वह जोखिम का काम कर रहा है, जिससे उसे चोट लग जाएगी तो क्या माँ का अधिकार नहीं कि, वह उसे प्यार करने के साथ-साथ डांट सके या जरूरत पड़ने पर हल्के हाथ का थप्पड़ ही दे सके? मेरी समझ से तो यह जरूरी है, बच्चे के अंदर एक अनुशासन भी होना चाहिए और अनुशासन के लिए जरूरी है कि, उसको लाड-प्यार के साथ थोड़ा डांट भी दी जाए।बच्चे की परवरिश करने वाली हर एक माँ, चाहे वह वर्किंग वूमेन हो या हाउसवाइफ, अपने बच्चों का कभी नुकसान नहीं चाहती। मैंने देखा है, मेहसूस करती हूँ कि, एक बच्चे के आने के बाद, माँ का जीवन बिल्कुल बदल जाता है। उसका कोई ‘मी टाइम’ नहीं होता। एक प्याली चाय की चुस्की लेने का भी उसके पास वक्त नहीं होता। वैसे तो मुझे चाय पीने की आदत नहीं, पर सुबह की एक प्याली चाय, हमेशा ठंडी ही नसीब होती है।पर कुछ ना कुछ करके एक माँ को अपने लिए भी थोड़ा सा वक्त निकालना चाहिए। अपनी खुशी के लिए भी जीना चाहिए। ऐसा एक माँ कर सकती है, जब उसे उसके परिवार और खासतौर पर उसके जीवन साथी का साथ मिले तो। मेरे पास ज्यादा वक्त तो खुद के लिए नहीं होता है, पर हां कभी-कभी मैं खुद के लिए जी कर खुश हो जाती हूँ। कभी सज-सवर कर, तो कभी अकेले शॉपिंग करके। कभी फोन पर दोस्तों के साथ गप्पे मार कर, कभी अपने रिश्तेदारों से मिल कर और ज्यादातर अपने बच्चे और पति के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताकर या फैमिली आउटिंग से। अगर आपके पास आपका ‘मी टाइम’ नहीं है और कहीं ना कहीं आप भी ऐसी किसी बातों का सामना कर रहे हैं कि, आप एक अच्छी माँ नहीं है तो, इसको अनसुना कर दीजिए, क्योंकि यह किसी को अधिकार नहीं कि हमें वह जज कर सके कि “मैं एक बेहतर माँ हूँ या नहीं”। यह आने वाला भविष्य ही बताएगा।यह मेरा या आपका बच्चा ही बता सकेगा कि आप उसकी अच्छी माँ हो या नहीं। पर हां आप अपनी तरफ से कभी भी हार मत मानना। हर वह अच्छी से अच्छी परवरिश देना जो आपके बच्चे को एक अच्छा इंसान बना सके। साथ में अपने परिवार और हम सफर का साथ जरूर लीजिए कि, खुद आप अपने लिए थोड़ा सा वक्त निकालकर ‘जी’ सकें। क्योंकि एक अच्छी माँ न होने की हीन भावना, एक माँ की नाखुशी का सबसे बड़ा कारण बन जाती हैं। जब एक घर में, परिवार में, माँ खुश होती है, तभी वह परिवार खुश रह सकता है। इसलिये तो कहते है.. #माँखुशतोपरिवारखुश।